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प्रेम के हठ योग में
जाग्रत है
प्रेम की कुंडलिनी।

रंध्र-रंध्र में
सिद्ध है साधना।

पोर-पोर
बना है अमृत-कुंड।

प्रणय-सुषमा
प्रस्फुटित है सुषुम्ना नाड़ी में
कि देह में
प्रवाहित हैं अनगिनत नदियाँ।
</poem>
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