भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा / पुष्पिता

946 bytes added, 05:30, 26 मई 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हवाओं में
होती है आवाज़
अपने समय को जगाने की।

चुप रहने वालों के खिलाफ़
बवंडर उठाने की।

हवाएँ
चुपचाप ही
आँधी बन जाती हैं।

हवाएँ
बिना शोर के
तूफ़ान ले आती हैं।

हवाएँ
हमेशा पैदा करती हैं आवाज़
प्रकृति के पर्यावरण को
हवाएँ पोंछती हैं
अपनी अलौकिक हथेली से।

हवाएँ गूँजती हैं धरती में
जैसे देह में साँस।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits