भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एकाकी राग / पुष्पिता

2,151 bytes added, 09:51, 27 मई 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक गहरी तड़प की
छटपटाहट में
निचुड़ती रहती है देह
रह रह कर टभकती है पीड़ा
बूँद बूँद चूता है दर्द
मन-घट में
स्मृतियों का अमृत

प्रतीक्षा की सूनी नदी
और मन का तट
झाँकती हूँ जब भी
दिखती है अपने मन की जल-सतह पर
चाहत की व्याकुलता में
थका हुआ तुम्हारा चेहरा
कोसती हूँ
साँसों की गोद में पड़े हुए समय को
समाई हुई है जिसमें
दो नक्षत्रों की दूरी
अपाट

प्रवास में
तृषा को जीना जाना
आँखों ने सीखा
आँसू पीना चुपचाप

रेगिस्तान में
दबे हुए बुत की तरह
तपती रहती हूँ हर पल
अकेलेपन की आग में

मन जीता है
और जानता है
एक पथराई हुई खामोशी
जिसमें जीती रही हूँ अब तक

तुम्हारी प्रतीक्षा में
बैठी रही हूँ समय के बारूदी ढेर पर
और सुलगती रही
भीतर ही भीतर
सबसे खुद को बचाकर

काँटे की तरह
धँसे हुए समय में
तुम्हारी स्मृतियों की धड़कनें
मेरे भीतर करती हैं स्तुति पाठ
आत्मीय मंत्रोच्चार की तरह।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits