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{{KKRachna
|रचनाकार=महेश वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
वे ज़्यादा से ज़्यादा पहुँचाना चाहते हैं आज का अगले दिन
देर रात छपते हैं अखबार
अभी इस वक्त
अख़बारी काग़ज़ पर धीमे धीमे सूख रहे होंगे
श्रद्धांजलि के वे शब्द
जो दोपहर हम अख़बार के दफ़्तर दे आये थे.
थोड़ा वे उन शब्दों से अलग थे जो वाकई हमने बोले थे उसी सुबह
छप के थोड़ा अलग वे लगते होंगे
कुछ और वे बदल चुके होंगे
जब हमसे मिलेंगे सुबह के उजाले में
चाय के साथ.
</poem>
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वे ज़्यादा से ज़्यादा पहुँचाना चाहते हैं आज का अगले दिन
देर रात छपते हैं अखबार
अभी इस वक्त
अख़बारी काग़ज़ पर धीमे धीमे सूख रहे होंगे
श्रद्धांजलि के वे शब्द
जो दोपहर हम अख़बार के दफ़्तर दे आये थे.
थोड़ा वे उन शब्दों से अलग थे जो वाकई हमने बोले थे उसी सुबह
छप के थोड़ा अलग वे लगते होंगे
कुछ और वे बदल चुके होंगे
जब हमसे मिलेंगे सुबह के उजाले में
चाय के साथ.
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