1,236 bytes added,
07:52, 29 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कबीर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
राजा के जिया डाहें, सजन के जिया डाहें
ईहे दुलहिनिया बलम के जिया डाहें।
चूल्हिया में चाउर डारें हो हँड़िया में गोंइठी
चूल्हिया के पछवा लगावतड़ी लवना।
ईहे दुलहिनिया ...
अँखियाँ में सेनुर कइली हो, पिठिया पर टिकुली
धइ धई कजरा एँड़िये में पोतें।
ईहे दुलहिनिया ...
सँझवे के सुत्तल भिनहिये के जागें
ठीक दुपहरिया में दियना के बारें।
ईहे दुलहिनिया ...
कहेलें कबीर सुनो रे भइया साधो
हड़िया चलाइ के भसुरू के मारें
ईहे दुलहिनिया ...
</poem>