भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> म...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कबीर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
मँड़ये के चारन समधी दीन्हा, पुत्र व्यहिल माता॥
दुलहिन लीप चौक बैठारी। निर्भय पद परकासा॥
भाते उलटि बरातिहिं खायो, भली बनी कुशलाता।
पाणिग्रहण भयो भौ मुँडन, सुषमनि सुरति समानी,
कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, बूझो पण्डित ज्ञानी॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits