भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ॐ जय जगदीश हरे / आरती

193 bytes removed, 15:58, 29 मई 2014
{{KKGlobal}}
{{KKAarti|रचनाकार=पं. श्रध्दाराम शर्मा KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}[[चित्र:Visnu_jagadeesh.jpg]]<poem> ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे॥भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरेजो ध्यावे फल पावे, स्वामी जय जगदीश हरे ।<br>दुख बिनसे मन का॥भक्त जनों के संकटसुख सम्पति घर आवे, क्षण में दूर करे ॥<br><br>कष्ट मिटे तन का॥
जो ध्यावे फल पावेमात पिता तुम मेरे, दुख बिनसे मन का ।<br>शरण गहूँ मैं किसकी॥सुख सम्पति घर आवेतुम बिन और न दूजा, कष्ट मिटे तन का ॥<br><br>आस करूँ मैं जिसकी॥
मात पिता तुम मेरेपूरण परमात्मा, शरण गहूँ मैं किसकी ।<br>तुम बिन और न दूजाअंतरयामी॥पारब्रह्म परमेश्वर, आस करूँ मैं जिसकी ॥<br><br>तुम सब के स्वामी॥
तुम पूरण परमात्माकरुणा के सागर, तुम अंतरयामी ।<br>पालनकर्ता॥पारब्रह्म परमेश्वर, मैं सेवक तुम सब के स्वामी ॥<br><br>, कृपा करो भर्ता॥
तुम करुणा के सागरहो एक अगोचर, तुम पालनकर्ता ।<br>सबके प्राणपति॥मैं सेवक तुम स्वामीकिस विधि मिलूँ दयामय, कृपा करो भर्ता ॥<br><br>तुमको मैं कुमति॥
तुम हो एक अगोचरदीनबंधु दुखहर्ता, सबके प्राणपति ।<br>तुम रक्षक मेरे॥किस विधि मिलूँ दयामयकरुणा हस्त बढ़ाओ, तुमको मैं कुमति ॥<br><br>द्वार पड़ा तेरे॥
दीनबंधु दुखहर्ताविषय विकार मिटाओ, तुम रक्षक मेरे ।<br>पाप हरो देवा॥करुणा हस्त श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥<br><br>संतन की सेवा॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।<br>श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ तन-मन-धन सब है तेरा ।<br>तेरा॥तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥मेरा॥</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits