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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}[[चित्र:Krishna.jpg]]<poem> आरती कुँज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुँज गले में वैजन्ती माला, मालाबजावे मुरली मधुर बाला, बालाश्रवण में कुण्डल झलकाला, झलकालानन्द के नन्द, श्री आनन्द कन्द, मोहन बॄज चन्दराधिका रमण बिहारी की <BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥<BR><BR>की॥
गले में वैजन्ती मालागगन सम अंग कान्ति काली, माला<BR>कालीबजावे मुरली मधुर बालाराधिका चमक रही आली, बाला<BR>आलीश्रवण लसन में कुण्डल झलकालाठाड़े वनमाली, झलकाला<BR>वनमालीनन्द के नन्दभ्रमर सी अलक, <BR>श्री आनन्द कन्दकस्तूरी तिलक, <BR>मोहन बॄज चन्द<BR>चन्द्र सी झलकराधिका रमण बिहारी ललित छवि श्यामा प्यारी की<BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥<BR><BR>की॥
गगन सम अंग कान्ति कालीजहाँ से प्रगट भयी गंगा, काली<BR>गंगाराधिका चमक रही आलीकलुष कलि हारिणि श्री गंगा, आली<BR>गंगालसन में ठाड़े वनमालीस्मरण से होत मोह भंगा, वनमाली<BR>भंगाभ्रमर सी अलकबसी शिव शीश, <BR>कस्तूरी तिलकजटा के बीच, <BR>चन्द्र सी झलक<BR>हरे अघ कीचललित चरण छवि श्यामा प्यारी श्री बनवारी की<BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥<BR><BR>की॥
जहाँ से प्रगट भयी गंगाकनकमय मोर मुकुट बिलसै, गंगा<BR>बिलसैकलुष कलि हारिणि श्री गंगादेवता दरसन को तरसै, गंगा<BR>तरसैस्मरण से होत मोह भंगागगन सों सुमन राशि बरसै, भंगा<BR>बरसैबसी शिव शीश, <BR>अजेमुरचन जटा के बीच, <BR>मधुर मृदंग हरे अघ कीच<BR>मालिनि संगचरण छवि श्री बनवारी अतुल रति गोप कुमारी की<BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥<BR><BR>की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, बिलसै<BR>देवता दरसन को तरसै, तरसै<BR>गगन सों सुमन राशि बरसै, बरसै<BR>अजेमुरचन <BR>मधुर मृदंग <BR>मालिनि संग<BR>अतुल रति गोप कुमारी की<BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥<BR><BR> चमकती उज्ज्वल तट रेणु, रेणु<BR>बज रही बृन्दावन वेणु, वेणु<BR>चहुँ दिसि गोपि काल धेनु, धेनु<BR>कसक मृद मंग,<BR> चाँदनि चन्द, <BR>खटक भव भन्ज<BR>टेर सुन दीन भिखारी की<BR>श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥की॥</poem>
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