भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..<BR>
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।<BR>अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..<BR>
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।<BR>सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..<BR>
विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।<BR>विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..<BR>
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।<BR>विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..<BR>
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।<BR>केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..<BR>
राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।<BR>मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..<BR>
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।<BR>प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..<BR>
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।<BR>पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..<BR> श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर, नारायण नरसिंह हरी। <BR/poem>जहां-जहां भीर पड़ी भक्तों पर, तहां-तहां रक्षा आप करी॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> भीर पड़ी प्रहलाद भक्त पर, नरसिंह अवतार लिया।<BR>अपने भक्तों की रक्षा कारण, हिरणाकुश को मार दिया॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> होने लगी जब नग्न द्रोपदी, दु:शासन चीर हरण किया।<BR>अरब-खरब के वस्त्र देकर आस पास प्रभु फिरने लगे॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> गज की टेर सुनी मेरे मोहन तत्काल प्रभु उठ धाये।<BR>जौ भर सूंड रहे जल ऊपर, ऐसे गज को खेंच लिया॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> नामदेव की गउआ बाईया, नरसी हुण्डी को तारा।<BR>माता-पिता के फन्द छुड़ाये, हाँ! कंस दुशासन को मारा॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> जैसी कृपा भक्तों पर कीनी हाँ करो मेरे गिरधारी।<BR>तेरे दास की यही भावना दर्श दियो मैंनू गिरधारी॥ श्री रामकृष्ण ..<BR> श्री रामकृष्ण गोपाल दामोदर नारायण नरसिंह हरि।<BR>जहां-जहां भीर पड़ी भक्तों पर वहां-वहां रक्षा आप करी॥
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,111
edits