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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
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<poem>आजु वृषभान भवन आनँद अति छायौ।
राधा अवतार भयौ, सब कौ मन भायौ॥
दुंदुभि नभ लगीं बजन, सुमन लगे बरसन।
धाए पुरबासी सब, करन कुँवारि-दरसन॥
मंगल उत्साह मुदित नारि सकल गावत।
लै-लै कमनीय भेंट कीर्ति-महल आवत॥
नचत वृद्ध-तरुन-बाल, भए सब नचनियाँ।
तिनके मुख धन्य होन प्रगटी रागिनियाँ॥
राधा कौं जन्म जानि प्रेमी सब धाए।
प्रेम सुधा बरसन की आस मन लगाए॥
राधा बिनु हरै कौन मुनि-मन-हर-मन कौं।
प्रगटै बिनु पात्र को आनँद-रस-घन कौं॥
बरसैगो कृष्णघन पाय पात्र राधा।
रस-धारा पावन तब बहैगी बिनु बाधा॥
आए तहँ विविध बेष सुर-मुनि-रिषि भव-अज।
दरसन कौं, परसन कौं कुँवारि-चरन-पंकज॥
आए नंद-जसुमति अति चित में हरषाए।
बिबिध रत्न मुकता मनि भेंट संग लाए॥
प्रसव-घर पधारि महरि कुँवारि लेत कनियाँ।
चूमत अति लाड़-चाव जात बलि निछनियाँ॥
उभय मातु मिलीं अमित स्नेह तन-मन तें।
कहि न जाय मिलन-प्रीति-रीति लघु बचन तें॥
नंद वृषभानु मिले हिय सौं हिय लाए।
छायौ चहुँ ओर मोद, गोद नँद भराए॥
</poem>
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<poem>आजु वृषभान भवन आनँद अति छायौ।
राधा अवतार भयौ, सब कौ मन भायौ॥
दुंदुभि नभ लगीं बजन, सुमन लगे बरसन।
धाए पुरबासी सब, करन कुँवारि-दरसन॥
मंगल उत्साह मुदित नारि सकल गावत।
लै-लै कमनीय भेंट कीर्ति-महल आवत॥
नचत वृद्ध-तरुन-बाल, भए सब नचनियाँ।
तिनके मुख धन्य होन प्रगटी रागिनियाँ॥
राधा कौं जन्म जानि प्रेमी सब धाए।
प्रेम सुधा बरसन की आस मन लगाए॥
राधा बिनु हरै कौन मुनि-मन-हर-मन कौं।
प्रगटै बिनु पात्र को आनँद-रस-घन कौं॥
बरसैगो कृष्णघन पाय पात्र राधा।
रस-धारा पावन तब बहैगी बिनु बाधा॥
आए तहँ विविध बेष सुर-मुनि-रिषि भव-अज।
दरसन कौं, परसन कौं कुँवारि-चरन-पंकज॥
आए नंद-जसुमति अति चित में हरषाए।
बिबिध रत्न मुकता मनि भेंट संग लाए॥
प्रसव-घर पधारि महरि कुँवारि लेत कनियाँ।
चूमत अति लाड़-चाव जात बलि निछनियाँ॥
उभय मातु मिलीं अमित स्नेह तन-मन तें।
कहि न जाय मिलन-प्रीति-रीति लघु बचन तें॥
नंद वृषभानु मिले हिय सौं हिय लाए।
छायौ चहुँ ओर मोद, गोद नँद भराए॥
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