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{{KKGlobal}}
{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> जय-जय तुलसी माता।<BR>सब जग की सुख दाता, वर दाता॥ जय-जय ..<BR>.
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर।<BR>रुज से रक्षा करके भव द्दाता॥ जय-जय ..<BR>.
बहु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या।<BR>विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता॥ जय-जय ..<BR>.
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।<BR>पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता॥ जय-जय ..<BR>.
लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में।<BR>मानवलोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता॥ जय-जय ..<BR>.
हरि को तुम अति प्यारी श्यामवरण सुकुमारी।<BR>प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता॥ जय-जय ...</poem>