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|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
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<poem>रुस्वा रुस्वा सारे ज़माने
तेरे क़िस्से, मेरे फ़साने!

कोई हमारा दर्द न जाने
कोई हमारी बात न माने!

दिल है, मैं हूँ, बिसरी बातें
मिल बैठे हैं दो दीवाने!

जैसे कोई बात नहीं है
यूँ बैठे हो तुम अन्जाने!

इश्क़ से पहले सोचा होता
अब क्या बैठे हो पछताने?

दुख के मोती चुनता हूँ मैं
क़तरा क़तरा दाने दाने!

आँख से ओझल, दिल से ओझल
अपने भी हैं अब बेगाने

दुनिया आनी जानी लेकिन
हम सब दुनिया के दीवाने

मुँह से निकली बात परायी
अब आये हो बात बनाने?

"सरवर" कुछ तो होश की लो तुम
ले बैठे क्या राग पुराने?
</poem>
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