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<poem>
(होरी काफी-ताल दीपचन्दी)

और सब भूल भले ही, श्रीहरिनाम न भूल॥
श्रीहरिनाम सुधामय सब के हित, सब के अनुकूल।
श्रीहरिनाम-भजन तें पहुँचत भव-सागर पर-कूल॥
रोग, सोक, संताप, पाप सब, जैसे सूखी तूल।
भगवन्नाम प्रबल पावक तें जरैं सकल जड़-मूल॥
जिन्ह हरिनाम-भजन नहिं कीन्हों जीवन तिन को धूल।
भक्ति रसाल मिलै नहिं कबहूँ, बोये विषय-बबूल॥
श्रीहरिनाम भयो जिनके मन जग-जीवन को मूल।
तिन्ह को धन्य जगत महँ जीवन पातक-पथ-प्रतिकूल॥
</poem>
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