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Kavita Kosh से
हिज्जे
सन्नाटे शब्द बेलते हैं, भाटे समुंदर।<br><br>
एक नया उचकुन लगाकर<br>
एक नई धाह फेंककर<br>
रख दी गई है, पूरी की पूरी ही सामने<br>
कि लो, इसे बेलो, पकाओ<br>
जैसे मधुमक्खियाँ अपने पंखों की छांह छाँह में<br>
पकाती हैं शहद।<br><br>
खुद को ही सानती<br>
खुद को ही गूंधती हुई बार-बार<br>
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