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क्या तू नहीं देखता इन सुमनोंमें उसका प्यारा रूप।
जिसके लिये विविध विधिसे है हार गूँथता तू अपरूप॥
बीजाङङ्कुर बीजांकुर शाखा-‌उपशाखा, क्यारी-कुञ्ज, लता-पा।
कण-कणमें है भरी हु‌ई उस मोहनकी मधुरी सा॥
कमलोंका कोमल पराग विकसित गुलाबकी यह लाली।
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