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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
बैठा लाला भारी भरकम,
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

एक सड़क किनारे पट्टी में,
है रखा कड़ाहा भट्टी में|
भर भर गिलास पिलवाता है,
वह केवल पाँच रुपट्टी में|
देता समान आदर सबको,
थोड़ा ज्यादा ना थोड़ा कम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

कई युवक युवतियाँ आते हैं,
वे लंबी लाइन लगाते हैं|
दादा दादी नाना नानी,
नाती पोतों को लाते हैं|
सब सुड़ सुड़ दूध सुड़कते हैं,
क्यों करें यहां पर लाज शरम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

यह दूध बड़ा खुशबू वाला,
मीठा मीठा, केसर डाला|
मन जिसका ललचा जाता है,
पीने को होता मतवाला|
फहराता उसके चेहरे पर,
पल भर को खुशियों का परचम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

नेता अफसर भी आ जाते,
पीकर यह दूध अघा जाते|
यह दूध बहुत है गुणकारी,
पीने वालों को सम‌झाते|
जो भी इस रस्ते से निकला,
पग उसके जाते हैं थम,थम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|
</poem>
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