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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
जयति जय श्रीबृषभानु-दुलारी॥
जयति कीर्तिदा जननी, जा‌ई जिन गुण-खानि राधिका प्यारी।
जय बृषभानु महीप-मुकुट-मनि, जिन घर जनमी जग-‌उजियारी॥
कृष्णा कृष्ण-जीवना, कृष्णाकर्षिनि कृष्ण-प्रान-‌आधारी।
परम प्रेम प्रतिमा, परिपूरन प्रिय-सुख अति सुख माननिहारी॥
प्रिय-सुख-समैं परम चतुरा नित, निज सुख समैं सुभोरी-भारी।
प्रिय-सुख लागि बिसरि सब अग-जग, सहित समोद प्रसंसा-गारी॥
टेक-बिबेक एक प्रियतम सौं, सब के सब संबंध निवारी।
भजत-भजत भजनीय भ‌ई अब, तुम्हरौ भजन करत, कंसारी॥
</poem>
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