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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
एक लकडिय़ा चन्दन की।
जै बोलो जसुदानन्दन की॥
एक लकडिय़ा आम की।
जै बोलो श्रीघनश्याम की॥
एक लकडिय़ा बोर की।
जै बोलो नन्द-किशोर की॥
एक लकडिय़ा नीम की।
जै बोलो रूप असीम की॥

एक लकडिय़ा कीकर की।
जै बोलो श्रीमुरलीधर की॥
एक लकडिय़ा साल की।
जै बोलो जसुमति-लाल की॥
एक लकडिय़ा पीपल की।
जै बोलो नेत्र कमल-दल की॥
एक लकडिय़ा सेमर की।
जै बोलो श्रीराधावर की॥

एक लकडिय़ा पाकर की।
जै बोलो प्रेम-सुधाकर की॥
एक लकडिय़ा तूत की।
जै बोलो जसुदा-पूत की॥
एक लकडिय़ा बाँस की।
जै बोलो प्रेम-निवास की॥
एक लकडिय़ा कटहल की।
जै बोलो नाशक अघ-दल की॥

एक लकडिय़ा जामुन की।
जै बोलो मुनि-मन-हर-गुन की॥
एक लकडिय़ा ताल की।
जै बोलो रसिक रसाल की॥
एक लकडिय़ा श्रीफल की।
जै बोलो नित्य सुमंगल की॥
एक लकडिया वर वट की।
जै बोलो श्रीनागर-नट की॥

लकड़ी एक बकायन की।
जै बोलो प्रेम-रसायन की॥
लकड़ी एक मदार की।
जै बोलो परम उदार की॥
लकड़ी एक अनार की।
जै बोलो गोप-कुमार की॥
लकड़ी एक प्रियाल की।
जै बोलो नँद के लाल की॥

लकड़ी एक पलास की।
जै बोलो जगन्निवास की॥
लकड़ी एक खजूर की।
जै बोलो रस-भरपूर की॥
लकड़ी एक बदाम की।
जै बोलो रूप ललाम की॥
लकड़ी एक बबूल की।
जै बोलो जग के मूल की॥

लकड़ी एक सुपारी की।
जै बोलो बिपिन-बिहारी की॥
लकड़ी एक अँजीर की।
जय बोलो प्रेम-‌अधीर की॥
</poem>
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