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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>विप्रवेशधारी वैश्वानर आये प्रभुके पास।
विनय-विनम्र बचन बोले मुखपर छाया मृदु हास॥

“नाथ! आपकी लीला अब लायेगी नूतन रंग।
सीता-हरण करेगा रावण खूब मचेगा जंग॥

अतः जगज्जननी सीता की सेवा का सब भार।
मुझे सौंप इन छाया-सीता को करिये स्वीकार॥

लीला-बध जब कर रावण का कर देंगे उद्धार।
तब मैं इन्हें सौंप दूँगा सादर लाकर सरकार”॥

दुःख हु‌आ यद्यपि प्रभु को ली बात किंतु यह मान।
हु‌आ नहीं लक्ष्मण को भी इस गुप्त भेद का ज्ञान॥
</poem>
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