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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>मधुर सु-सेवा से प्रसन्न हो शबरी से बोले श्रीराम।
भद्रे! शुचि शुश्रूषा की, अब जा‌ओ निज अभीष्ट हरि-धाम॥

आज्ञा पा, शबरी ने जलते पावक में जब किया प्रवेश।
दिव्य अग्रि-सम देह प्राप्तकर तेजस्वी धर पावन वेश॥

बसन, हार, आभूषण, अनुलेपन सब दिव्य परम तन धार।
विद्युत्‌‌-द्युति दमकाती पहुँची दिव्य धाम, तम के उस पार॥
</poem>
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