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मुस्कुराने के लिए / हुल्लड़ मुरादाबादी
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08:20, 14 जुलाई 2014
ज़िंदगी में ग़म बहुत हैं, हर कदम पर हादसे रोज
कुछ
तो
समय
तो
निकालो, मुस्कुराने के लिए
</poem>
Sharda suman
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