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वक़्त / बुद्धिनाथ मिश्र

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खो गई खण्डहरों में वैभव की चहल-पहल ।
बाज बहादुर राजा, रानी वह रूपमती
दोनों को अंक में समेट सो रही धरती।धरती ।
रटते हैं तोते इतिहास की छड़ी से डर
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