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मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो<br>
जिस घड़ी रात चले<br>
आसमानों का लहू पी कर के सियह <ref>काली</ref> रात चले<br>मर्हम-ए-मुश्क <ref>कस्तूरी मलहम</ref> लिये नश्तर-ए-अल्मास <ref>हीरे की छुरी</ref> चले<br>
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले<br>
दर्द की के कासनी , पाज़ेब बजाती निकले<br>जिस घड़ी सीनों में डूबते हुये डूबे हुए दिल<br>आस्तीनोंमें आस्तीनों में निहाँ हाथों की ,रह तकने निकले<br>लगे, आस लिये<br>और बच्चों के बिलखने की तरह , क़ुल-क़ुल-ए-मय<br>बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने<br>
जब कोई बात बनाये न बने<br>
जब न कोई बात चले<br>
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