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<poem>
कबहुँ तौ किरन कौनिउ झोपड़ी मा झाँकै,

न कुछ अउर चाही अँधेरिया तौ आँकै।

बनै न घरैतिन बसै न परोसे

न सोचै कि दुनिया है वहिके भरोसे

तरस खाइ के हमकाँ कबहूँ न ताकै।

… … न कुछ अउर चाही अँधेरिया तौ आँकै।

करय झूठ वादा बरस बीत अनगिन

गरीबन काँ कबहूँ न पूछै यकौ छिन

न बिसुवास अब वहिके हाँ कै न ना कै।

… … न कुछ अउर चाही अँधेरिया तौ आँकै।

पलैं लाल झोपड़िउ मा गुदड़िउ मा रहि कै

अठारह महीना कै इतिहास कहि गै

यसस लाल तौ अपनी चुँदरी मा टाँकै।

… … न कुछ अउर चाही अँधेरिया तौ आँकै।

अमीरे गरीबे कै कस दुइ कहानी

बयार एक धरती गगन एक पानी

सरल एक रँग है धुआँ दोउ चिता कै।

… … न कुछ अउर चाही अँधेरिया तौ आँकै।
</poem>
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