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पुष्पिता / परिचय

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|रचनाकार=पुष्पिता
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पुष्पिता अवस्थी अध्यापक हैं, कवि हैं, संपादक, अनुवादक, कहानीकार, कुशल संगठनकर्ता और हिंदी की विश्वदूत हैं यानी बहुमुखी प्रतिभा की धनी पुष्पिता जी को किसी एक सीमा में रख पाना कठिन है। कानपुर, भारत में जन्मी पुष्पिता जी की पढ़ाई राजघाट, वाराणसी के प्रतिष्टित जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध) में हुई, बाद में सन 1984 से 2001 तक ये जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के वसंत कॉलेज फ़ॉर विमैन के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष भी रहीं। भारतीय दूतावास एवं भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र, पारामारियो, सूरीनाम में प्रथम सचिव एवं हिंदी प्रोफ़ेसर के रूप में सन् 2001 से 2005 तक कार्य किया। सन् 2003 में सूरीनाम में सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन इन्हीं के कुशल संयोजन में संपन्न हुआ। सन् 2006 से नीदरलैंड स्थित ‘हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन’ की निदेशक हैं। सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़ी पुष्पिता जी ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ और स्त्री अधिकारों के लिए संघर्षरत समूहों से सक्रियता से संबद्ध रही हैं। अपने सूरीनाम प्रवास के दौरान पुष्पिता जी ने अथक प्रयास से एक हिंदीप्रेमी समुदाय संगठित किया जिसकी परिणति उनके द्वारा अनूदित और संपादित समकालीन सूरीनामी लेखन के दो संग्रहों ‘कविता सूरीनाम’और ‘कहानी सूरीनाम(दोनों पुस्तकें राजकमल प्रकाशन से वर्ष 2003 में प्रकाशित) में हुई। वर्ष 2003 में ही राजकमल प्रकाशन से मोनोग्राफ़ ‘सूरीनाम’ भी प्रकाशित हुआ। इनके कविता संग्रहों ‘शब्द बनकर रहती हैं ॠतुएँ’(कथारूप 1997), ‘अक्षत’ (राधाकृष्ण प्रकाशन,2002), ‘ईश्वराशीष’(राधाकृष्ण प्रकाशन,2005) और ‘हृदय की हथेली’(राधाकृष्ण प्रकाशन 2009) तथा कहानी संग्रह ‘गोखरू’(राजकमल प्रकाशन,2002) को साहित्य प्रेमियों द्वारा खूब सराहना मिली। वर्ष 2005 में राधाकृष्ण प्रकाशन से ‘आधुनिक हिंदी काव्यालोचना के सौ वर्ष’ एक आलोचनात्मक पुस्तक आई। हिंदी और संस्कृत के विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र से संवाद ‘सांस्कृतिक आलोक से संवाद’ वर्ष 2006 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ। वर्ष 2009 में मेधा बुक्स से ‘अंतर्ध्वनि’ काव्य-संग्रह और अंग्रेजी अनुवाद सहित ‘रे माधव प्रकाशन’ से ‘देववृक्ष’ का प्रकाशन हुआ। साहित्य अकादमी, दिल्ली से ‘सूरीनाम का सृजनात्मक हिंदी साहित्य-2010’ और नेशनल बुक ट्रस्ट से ‘सूरीनाम’ वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ। इंडियन इंस्टिट्यूट, एम्सटर्डम ने डिक प्लक्कर और लोडविक ब्रण्ट द्बारा डच में किए इनकी कविताओं के अनुवाद का एक संग्रह 2008 में छापा है। नीदरलैंड के ‘अमृत’ प्रकाशन से डच अँग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं में 2010 में ‘शैल प्रतिमाओं से’ शीर्षक से काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ।
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