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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल |संग्रह=सब कुछ होना बचा रहेगा / विनोद कुमार शुक्ल}}{{KKCatKavita}}<poem>प्रत्येक आवाज खटका है<br />बच्चे का मॉंमाँ! कहकर पुकारना<br />खत्म होती हरियाली में<br />बीज से अंकुर का निकलना <br />खाली मुट्ठी में बंद हवा का छूटकर<br />जमीन पर गिरना खटका है.<br />पानी पीना और रोटी चबाना भी.<br /><br />बचाओ! बचाओ!! चिल्ला सकने वाले लोग<br />बचाओ भी नहीं चिल्लाते<br />कोई बचा है<br />यह पूछने वाला भी नहीं बचेगा<br />लगता है दुनिया को नष्ट करने का धमाका<br />अभी शायद हो<br />हो सकता है जिंदगी को नष्ट करने के धमाके के पहले<br />जिंदगी का बड़ा धमाका हो.<br /><br />poem
