भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
लिखने वाले ने कुछ ऐसी दस्ताने-ग़म लिखी
पढ़ने वाले रो पड़े उसका दिल पर असर होने के बाद
सुब्ह दम सूरज की किरनो का असर भी खूब है
दर्दे-दिल थम सा गया कुछ कम हुआ है शब बसर रात भर होने के बाद
खुश हुआ दिल उन लबों पर इक तबस्सुम देखकर
मुस्कुरा देना है काफी लौट आयीं फिर से खुशियाँ चश्म तर होने के बाद
हो गया जीने का सामाँ मिल गई मंज़िल 'रक़ीब'
दर तेरा पाया जबीं ने दर-बदर होने के बाद
</poem>
490
edits