भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।
भरी थकन में सोते फिर भी —
उठते बड़े सवेरे हैं ।।
धरती की सेवा करते हैं
लू हो चाहे ठण्ड सयानी
चाहे झर-झर बरसे पानी
ये तो मौसम हैं हमने तूफ़ानों के मुँह फेरे हैं ।
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
दूर शहर से रहने वाले
सीधे-सादे, भोले-भाले
रखवाले अपने खेतों के जिनमें बीज बिखेरे हैं ।
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
धरती को साड़ी पहनाते
दूर-दूर तक भूख मिटाते
मुट्ठी पर दानों को रखकर कहते हैं बहुतेरे हैं
हम धरती के बेटे बड़े कमेरे हैं ।।
भरी थकन में सोते फिर भी
उठते बड़े सवेरे हैं ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits