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|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सुबह के दर्द को रातों की जलन को भूलें किसके घर जायेँ कि उस वादा-शिकन को भूलें
सुबह के दर्द को रातों आज तक चोट दबाये नहीं दबती दिल की जलन को भूलें <br>किसके घर जायेँ कि किस तरह उस वादासनम-ए-शिकन संगबदन को भूलें <br><br>
आज तक चोट दबाये नहीं दबती अब सिवा इसके मदावा-ए-ग़म-ए-दिल की <br>क्या है किस तरह उस सनमइतनी पी जायेँ कि हर रंज--संगबदन मेहन को भूलें <br><br>
अब सिवा इसके मदावा-ए-ग़म-ए-दिल क्या है <br>इतनी पी जायेँ कि हर रंज-ओ-मेहन को भूलें <br><br> और तहज़ीब-ए-गम-ए-इश्क़ निबाह दे कुछ दिन <br>आख़िरी वक़्त में क्या अपने चलन को भूलें<br><br/poem>
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