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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार‎
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<poem>
(राग मालकोश-ताल दीपचन्दी)

बनूँ तुम्हारे शयन-कक्ष का पलँग, बिछौना मैं कोमल।
बनूँ तुहारे सुख-स्पर्शका मन्द-सुगन्ध पवन शीतल॥
बनूँ तुहारे स्नान-जलाशयका मैं शीतल जल निर्मल।
बनूँ तुहारे धारण करनेका मैं पीत-वस्त्र उज्ज्वल॥
बनूँ तुहारी मालाका मैं, सुन्दर सुरभित सुमन परम।
बनूँ तुहारा कण्ठहार मैं, रहूँ झूलता सुन्दरतम॥
बनूँ तुहारे भोजनका मैं रुचिकर मधुर स्वाद रसमय।
बनूँ तुहारी लीलाका मैं नित्य उपकरण लीलामय॥
</poem>
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