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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार‎
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<poem>
(राग आसावरी)

मो कों कछु न चहिये राम।
तुम बिन सबही फीके लागैं, नाना सुख धन-धाम॥
सुंदरि, संतति, सेवक, सब गुन, बुधि बिद्या भरपूर।
कीरति, कला-निपुनता, नीती, इन कौं रखिये दूर॥
आठ सिद्धि, नौ निद्धि आपनी और जनन कौं दीजै।
मै तौ चेरौ जनम-जनम-कौ, कर धरि अपनौ कीजै॥
</poem>
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