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<poem>
(राग भैरवी-ताल कहरवा)

कर लो आत्मसात्‌‌ तुम मुझको अपनेमें, मेरे सर्वस्व!
मेरे अहंकार-ममताका रह न जाय कुछ भी अस्तित्व॥
तुममय हो जाऊँ मैं, कुछ भी रहे न मेरा तुमसे भिन्न।
तुममें एकमेकता मेरी रहे नित्य अक्षय अच्छिन्न॥
तुम ही मुझमें बोलो, देखो, सुनो, करो सारे ही काम।
तुम ही स्पर्श करो, सूँघो सब, चखो रस विभिन्न अभिराम॥
हो जायें सब धन्य तुम्हें पा, हो जायें सब ही कृतकृत्य।
चलता रहे तु्म्हारा के्वल इसमें लीलामय! रस-नृत्य॥
</poem>
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