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पता है, त(लाश)-1 / पीयूष दईया

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<poem>
लिखत
आंख पढ़त

हर लेती होनी
देखती

पिंजर में अक्षरी
दर्ददर्षी है

खुला ज़ख़्म, शब्द में श्मशान

काता जीव का
उलटी जीभ

न(।)र
सीख मिली

पढ़त
आंख लिखत
</poem>
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