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08:33, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
लिखत
आंख पढ़त
हर लेती होनी
देखती
पिंजर में अक्षरी
दर्ददर्षी है
खुला ज़ख़्म, शब्द में श्मशान
काता जीव का
उलटी जीभ
न(।)र
सीख मिली
पढ़त
आंख लिखत
</poem>