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दीदी / प्रमोद कुमार तिवारी

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<poem>
दीदी मुझसे एक खेल खेलने को कहती
एक-एक कर
वह चींटों के पैर तोड़ती जाती
गौर से देखती
उनके घिसट कर भागने को
और खुश होती।
दीदी मुझसे एक खेल खेलने को कहती
एक दिन देखा छुटकी की आँख बचाकर
दीदी ने उसकी गुड़िया की गर्दन मरोड़ दी।
पड़ोस की फुलमतिया कहती है
तेरी दीदी के सर पर चुड़ैल रहती है
कलुआ ने आधी रात को तड़बन्ना वाले मसान पर
उसे नंगा नाचते देखा था।
दादाजी ने जो जमीन उसके नाम लिखी थी
हर पूर्णमासी की रात दीदी वहीं सोती है
तभी तो उसमें केवल काँटे उगते हैं।
स्वाँग खेलते समय दीदी अक्सर भूतनी बनती
झक सफेद साड़ी में कमर तक लंबे बाल फैला
वह हँसती जब मुर्दनी हँसी
तो औरतें बच्चों का मुँह दूसरी ओर कर देतीं।
माँ रोज एक बार कहती है
कलमुँही की गोराई तो देखो
जरूर पहले राकस जोनी में थी
मुई! जनमते ही माँ को खा गई
ससुराल पहुचते ही भतार को चबा गई
अब हम सब को खाकर मरेगी
माँ रोज एक बार कहती है।
दीदी को दो काम बहुत पसंद हैं
बिल्कुल अकेले रहना
और रोने का कोई अवसर मिले
तो खूब रोना
अंजू बुआ की विदाई के समय
जब अचानक छाती पीट-पीट रोने लगी दीदी
तो सहम गई थीं अंजू बुआ भी।
पत्थर से चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखों से
दीदी जब एकटक देखती है मुझे
मैं छुपने के लिए जगह तलाशने लगता हूँ।
दीदी के साथ मैं कभी नहीं सोता
वह रात को रोती है
एक अजीब घुटी हुई आवाज में।
जो सुनाई नहीं पड़ती बस शरीर हिलता है।
आधी रात को ही एक बार उसने
छोटे मामा को काट खाया था
और इतने जोर से रोई थी
कि अचकचाकर बैठ गया था मैं।
दीदी मुझे बहुत प्यार करती है
गोद में उठा मिठाई खाने को देती है
उस समय मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ता रहता हूँ
और पहले मिठाई को जेब में
फिर चुपके से नाली में डाल आता हूँ।
दीदी मेरे सारे सवाल हल कर देती है
पर छुटकी बताती है
सवाल दीदी नहीं, चुड़ैल हल करती है।

दीदी से सभी डरते हैं
बस! पटनावाली सुमनी को छोड़कर
सुमनी बताती है
माँ ने ही अपनी सहेली के बीमार लड़के से
दीदी की शादी कराई थी!
सुमनी तो पागल है
जाने क्या-क्या बोलती रहती है
कहती है
घिसट कर ही सही
किसी के संग भाग गई होती
तो दीदी
ऐसी नहीं होती।
</poem>
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