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<poem>
हम अपने घर जला देंगे
तो कहाँ जाएँगे?

क्या सुख के लिए
कुछ और तरीके काम आएँगे?

सुस्ताने के लिए एक कथरी
ओढ़ने के लिए वही पुरानी चादर
बिछाने के लिए आधी-अधूरी चटाई

सब बिसराकर किधर जाएँगे?

हम अपने घर जला देंगे
तो क्या पाएँगे?

प्यास बुझाने के लिए वह उदास घड़ा
खाने के लिए काँसे की बरसों पुरानी थाली
पाने के लिए एक भारी लोटे में
जमा होते रहे कुछ अनमने सपने

सब कुछ गँवाकर क्या बचाएँगे?

क्या सुख के लिए
कुछ और रास्ते मिल जाएँगे?

हम अपने घर जला देंगे
तो कहाँ जाएँगे?
</poem>
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