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राह हारी मैं न हारा!
थक गए पथ धूल के-—उड़ते हुए रज-कण घनेरे।घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे।मेरे ।जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा!राह हारी मैं न हारा!
स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे
थक गए वन-विहग, मृगतरु-—थके सूरज-चाँद-तारे।तारे ।पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव -ध्येय तारा।तारा ।राह हारी मैं न हारा!
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