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दार्शनिक दलबदलू / काका हाथरसी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवालऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदलीराजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदलीनेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिएजो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए
पत्रकार करने लगेसमझे नेता-नीति को, ऊलमिला न ऐसा पात्रमुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-जलूल सवाल शास्त्रपढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणीउनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानीमैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिकमैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक
ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली  राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए  जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए  समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र  मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र  पढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणी  उनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानी  मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक  मैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक  हरे रंग के लैंस का चश्मा लिया चढ़ाय  सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय  'हरी-क्रांति' हो जाय, भावना होगी जैसी  उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी  भेद-भाव के हमें नहीं भावें हथकंडे  अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे  सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात ?  उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात  देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा  कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा  जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात ?
उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात
देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा
कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा
जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी
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