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चोरी की रपट / काका हाथरसी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>घूरे खाँ के घर हुई चोरी आधी रात ।  
कपड़े-बर्तन ले गए छोड़े तवा-परात ॥
 छोड़े तवा-परात, सुबह थाने को धाए ।  
क्या-क्या चीज़ गई हैं सबके नाम लिखाए ॥
 आँसू भर कर कहा – महरबानी यह कीजै ।  
तवा-परात बचे हैं इनको भी लिख लीजै ॥
कोतवाल कहने लगा करके आँखें लाल ।  
उसको क्यों लिखवा रहा नहीं गया जो माल ॥
 नहीं गया जो माल, मियाँ मिमियाकर बोला ।  
मैंने अपना दिल हुज़ूर के आगे खोला ॥
 मुंशी जी का इंतजाम किस तरह करूँगा ।  
तवा-परात बेचकर 'रपट लिखाई' दूँगा ॥
</poem>
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