भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
}}
[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 4|<< पिछला भाग]]
 
भगवान सभा को छोड़ चले, करके रण गर्जन घोर चले
कुल को खाते औ' खोते हैं
 
[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 6 | अगला भाग >>]]