भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्‍नी / कुमार मुकुल

1,007 bytes added, 16:26, 29 सितम्बर 2014
अंधड उखाड देते हैं उसकी चिनगारी को
चांदनी की बाबत

उसने कभी विचार ही नहीं किया

जैसे वह जानती नहीं

कि वह भी कोई शै है


उसे तो बस

तेज काटती हवाओं

और अंधडों में

चैन आता है

जो उसके बारहो मास बहते पसीने को

तो सुखाते ही हैं

वर्तमान की नुकीली मार को भी

उडा-उडा देते हैं


अंधडों में ही

एकाग्र हो पाती है वह

और लौट पाती है

स्मृतियों में


अंधड

उखाड देते हैं उसकी चिनगारी को

और धधकती हुई वह

अतीत की

सपाट छायाओं को

छू लेना चाहती है ।

1996
765
edits