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याद / कुमार मुकुल

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|रचनाकार=कुमार मुकुल
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|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
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<poem>
1
 
इधर
 
नहीं आयी
 
तुम्हारी याद
 
अपना चेहरा नहीं देखा इधर
 
आईना देखता पर दाढी बनाने भर
 
यूं
 
भूल सा जाने पर
 
दुखी नहीं
 
खुश भी नहीं
 कि चलो अच्छा हुआ 
नहीं
 
डरता नहीं
 
कि इस तरह भूल ही जाउंगा कभी
 
2
 
अनुपस्थ‍िति तुम्हारी
 
कभी-कभी
 खडी हो जाती है  मुकाबिल  
पडाड सी
 मौसम बदलने को होता है 
हरसिंगार
 
बिछ रहा होता है बाहर
 
तब
 
निर्द्वद्व होती तुम्हारी हंसी
 
झड जाती है भीतर
 3  तुम्हारी उपस्थ्‍िाति  एक वजनी पत्थर उठाता तो पता चलता ताकत का उछाला नहीं जा सकता जिसे टिकाना होता है छाती पर तब गहराती है नींद । 
1997
</poem>
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