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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार मुकुल|अनुवादक=|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल}}{{KKCatKavita}}<poem>बहती नदी में खूब झलफलाता है चांद
जैसे चिडिया नहाती है
सुबह की धूप में
और मछलियां
चांदनी में फंसती हैं इस तरह
कि चली आती हैं दूर तक
और लौट नहीं पाती हैं
चांदनी में फंसती हैं इस तरह कि चली आती हैं दूर तक और लौट नहीं पाती हैं चांदनी में
नदी नहाते लोग
लगते हैं सोंस से और दूर से आती नाव
घडियाल सा मुंह फाडे
आगे बढती जाती है ।
1996
</poem>