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चील / कुमार मुकुल

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गंगा किनारे
पम्प हाउस के डबरों के ऊपर लगी रेलिंग पर
बैठी हैं चीलें
कतार में
उनकी लंबी पूंछ खींचते
कौए
उनसे अपने हिस्से का भोजन मांग रहे हैं

इतनी निकट से पहली बार देखा चीलों को
पहले उनके बाज होने का शक उभरा
फिर उनकी जमात देख चिंतित हुआ
और सोचा अखबारी फोटोग्राफरों के लिए
अच्छा बाजार हैं ये
तभी एक चील उडी
और चली गयी दूर तक
गोता खाते
और वहीं चक्कर खाते थि‍र होने लगी
तब खुश हुआ
कि ये चीलें ही हैं
और यह विचार स्थ‍िर हुआ कि
चीलों अौर बाजों की प्रजाति एक है
वैसी ही काउंस आंखें
और अकुंशाती चोंच
बस बडा कद ही है इनका
जो इनकी महत्ता घटा रहा है।
1996
</poem>
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