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सुअर (दो) / उदय प्रकाश

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|रचनाकार=उदय प्रकाश
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<poem>
एक ऊंची इमारत से
बिलकुल तड़के
बैठ कर
शहर की ओर चला गया
 
शहर में जलसा था
कॉफी - बिस्कुट बंटे
मालाएँ उछलीं
 
अगली सुबह
मुस्करा रहा था
उसने कहा था
हम विकास कर रहे हैं  
उसी रात शहर से
चीनी और मिट्टी का तेल
ग़ायब थे ।थे।</poem>
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