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गोदोहन / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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मैं दुहिहौं मोहिं दुहन सिखावहु ।<br>
कैसें गहत दोहनी घुटुवनि, कैसैं बछरा थन लै लावहु ।<br>
कैसैं लै नोई पग बाँधत, कैसे लै गैया अटकावहु ।<br>
कैसैं धार दूध की बाजति, सोई सोइ विधि तुम मोहिं बतावहु ।<br>
निपट भई अब साँझ कन्हैया, गैयनि पै कहुँ चोट लगावहु ।<br>
सूर श्याम सौं कहत ग्वाल सब,धेनु दुहन प्रातहि उठि आवहु ॥2॥