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वह परवाज़ / अवनीश सिंह चौहान

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धूप सुनहरी, माँग रहा है रामभरोसे आज
नदी चढ़ी है सागर गहरा पार उसे ही करना सोच रहा वह नैया छोटी
और धार पर तिरना
छोटे-छोटेचप्पू मेरे साहस-धीरज-लाज
खून-पसीना
बो-बोकर वह
फसलें नई उगाए तोता-मैना की बातों से उसका मन घबराए
चिड़ियाँ चहकें डाल-डाल पर करें पेड़ पर राज
घडियालों घड़ियालों का अपना घर है उनको भी तो जीना पानी तो है सब का सबका जीवन जल की मीन- नगीना
पंख सभी के छुएँ शिखर को प्रभु दे, वह परवाज़
</poem>
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