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तुम हे साजन! / पढ़ीस

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|रचनाकार=पढ़ीस
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मँइ गुनहगार मैं गुनाहगार के आधार हौ तुम हे साजन!निपटि गँवार के पियार हौ तुम हे साजन! 
घास छीलति उयि चउमासन के ख्वादति खन,
तुम सगबगाइ <ref>सकपकाना, संकोच करना</ref> क हमरी अलँग ताक्यउ साजन! हायि हमहूँ तौ तउ सिसियाइ के मुसक्याइ दिहेन,दिहन !बसि हँसाहुसी मोहब्बति मा मुहब्बति मँ बँधि गयन साजन! आदि कइकई-कइ कई कि सोचि सोचि क बिगरी बातै,अपनिहे चूक करेजे मा है सालति साजन! साजन।तुम कहे रहेउ रहउ कि सुमिरेउ गाढ़े सकरे सँकरे मा,जापु तुमरै तुमरइ जपित है तुम कहाँ छिपेउ साजन!  
बइठि खरिहाने मा ताकिति है तउनें गल्ली,
जहाँ तुम लौटि के आवै क कहि गयौ साजन!साजन।हन्नी उइ <ref>सप्तर्षि तारा मंडल का समूह, हिरन</ref> उयि आई जुँधय्यउ <ref>चन्द्रमा</ref> अथयी छठिवाली<ref>डूबना,समाप्त होना</ref> छठिवालीटस ते मस तुम न भयउ कहाँ खपि गयौ साजन?  कूचि कयि आगि करेजे मा मँ हायि बिरहा की,कैस कपूर की तिना तना ति उड़ि गयउ गयौ साजन! याक झलकिउ जो कहूँ तुम दिखायि भरि देतिउ,अपनी ओढ़नी मा उढ़पी मँ तुमका फाँसि कै राखिति साजन! __बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ सबद-अरथ: सगबगाइ – सकपकाब यानी संकोच करब हन्नी – सप्तर्षि तारा मंडल कै समूह, हिरन जुँधय्यउ – चंद्रमा अथयी – डूबब, समाप्त हुअब या तिरोहित हुअब।साजन।
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