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अकेले की नाव- 8 / शेषनाथ प्रसाद श्रीवास्तव
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17:03, 7 नवम्बर 2014
अभी यह घुली घुली ही है
कल छलकेगी या परसों
पर एक दिन छलकेगी अवश्य.
</poem>
Sharda suman
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