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निरबलपै बल अजमावहु तुम, कैसे चरित तिहारे॥3॥
‘दीनानाथ’ कहावत हो तुम, का यह विरद विसारे।
दीन मोन मीन सम तलफत है यह, काहे न लेहु उबारे॥4॥
कहा कहों, का तुम नहिं जानहु, अब सब विधि हम हारे।
हारे के तो तुम बिनु मोहन! और न कोउ सहारे॥5॥
