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मोहन! मो नयनन के तारे / स्वामी सनातनदेव
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10:55, 20 नवम्बर 2014
निरबलपै बल अजमावहु तुम, कैसे चरित तिहारे॥3॥
‘दीनानाथ’ कहावत हो तुम, का यह विरद विसारे।
दीन
मोन
मीन
सम तलफत है यह, काहे न लेहु उबारे॥4॥
कहा कहों, का तुम नहिं जानहु, अब सब विधि हम हारे।
हारे के तो तुम बिनु मोहन! और न कोउ सहारे॥5॥
Sharda suman
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