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|रचनाकार=परवीन शाकिर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ <br>धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ<br><br>
भोर समय तक जिसने हमें बाहम उलझाये रखा <br>वो अलबेली रेशम जैसी बात गुज़र गई जानाँ <br><br>
सदा की देखी रात हमें इस बार मिली तो चुप के से <br>ख़ाली हाथ पे रख के क्या सौग़ात गुज़र गई जानाँ <br><br>
किस कोंपल की आस में अब तक वैसे ही सर-सब्ज़ हो तुम <br>अब तो धूप का मौसम है बरसात गुज़र गई जानाँ <br><br>
लोग न जाने किन रातों की मुरादें माँगा करते हैं <br>अपनी रात तो वो जो तेरे साथ गुज़र गई जानाँ <br><br/poem>
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